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इस योद्धा की कहानी बड़ी दिलचस्प है, देश को आजाद कराने के लिए वह शेर से नेता बन गया।

Baliya News: प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कोशिकिया ने कहा कि सरदार रामश सिंह उनके पिता थे। रमेशेश के सरदार बनने की कहानी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी है.

जिले के एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी जिनकी कहानी बेहद दिलचस्प है। आजादी के लिए और ब्रिटिश शासकों से अपनी पहचान छुपाने के लिए रमेश सिंह सरदार रमेश सिंह बन गये। इसका वर्णन बलिया मरता से और उत्तर प्रदेश का स्वतंत्रता संग्राम जैसी पुस्तकों में भी किया गया है। जानिए डिटेल…

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कोशिकिया ने कहा कि सरदार रामश सिंह उनके पिता थे। रमेशेश के सरदार बनने की कहानी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी है. 1942 में 22/23 अगस्त की क्रांति की रात ब्रिटिश अधिकारी नेदर सोल यहां आये थे। नेदर सोल ने लोगों को गिरफ़्तार करना और सज़ा देना शुरू कर दिया। उस वक्त रमेश सिंह की उम्र करीब 19 साल थी.

यह नारा तब सफल हुआ जब ब्रिटिश सेना ने इसे चारों तरफ से घेर लिया…

रमेश सिंह बलिया के सिटी चौक शहीद पार्क स्थित एक किराना दुकान पर काम करता था। इस बीच 14 से 15 लोगों ने पुलिस की इस गिरफ्तारी का विरोध किया. इस बीच चौक को अंग्रेजी सेना ने घेर लिया था और उसके बाद जान और मौत का खतरा था लेकिन जान बचाने के लिए तारा मेडिकल हॉल के मालिक डॉ. प्रमोद कुमार ने कहा कि पुलिस हमारे भाई हैं. इस नारे के बाद जैसे ही माहौल बदला तो सभी लोग यहां से भाग गए और पैदल ही गंगा पार कर कोलकाता चले गए.

यहां से शुरू हुई सरदार बनने की कहानी…

कोलकाता पहुँचने के बाद रमेश सिंह भूखे, प्यासे, डरे और सहमे हुए थे लेकिन उन्हें एक सरदार दम्पति ने आश्रय दिया। आख़िरकार उसने दाढ़ी और बाल बढ़ा लिए और सिख बन गया, ताकि कोई उसे पहचान न सके। ये कहानी है रमेश सिंह के सरदार बनने की. उन्होंने जीवन भर सरदार के सिद्धांतों का पालन किया। देश की आजादी के बाद वह कोलकाता से बुला आये। उनके जीवन से जुड़ी कई घटनाएं हैं. इसका विवरण आजादी की संघर्ष बल्या (उत्तर प्रदेश सूचना विभाग) एवं उत्तर प्रदेश सरकार अभिलेखागार अगस्त क्रांति 1942 पुस्तक में दिया गया है। देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने अपनी पहचान छुपा ली और रमेशेश सिंह से सरदार रमेशीश सिंह बन गये.

इस योद्धा की कहानी है बेहद दिलचस्प, देश को आजाद कराने के लिए बना सरदार

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