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anora movie: बॉलीवुड स्टार्स की फीस से आधा बजट, एक से-क्स वर्कर की कहानी और 4 ऑस्कर… क्यों खास है ‘anora’ की जीत?

anora movie: ऑस्कर अवॉर्ड्स में ‘anora film’ को 6 नॉमिनेशन मिले थे, जिनमें से 5 कैटेगरी में फिल्म ने बाजी मारी। इन 5 अवॉर्ड्स में से 4 अवॉर्ड फिल्ममेकर सीन बेकर के नाम रहे। इस जीत के साथ ही उन्होंने स्वतंत्र फिल्ममेकर्स के लिए बड़ी मिसाल कायम की है। आइए आपको बताते हैं कैसे…

oscar 2025 में बेस्ट पिक्चर का अवॉर्ड जीतने वाली फिल्म anora movie इन दिनों इंटरनेशनल सिनेमा फैन्स के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। anora movie को दुनियाभर में मिले Review ज्यादातर पॉजिटिव कहे जा सकते हैं, लेकिन इस फिल्म को ऑस्कर का मजबूत दावेदार नहीं माना जा रहा था। लेकिन जिस तरह से Anora movie ने ऑस्कर में अपना नाम बनाया, वो कमाल की बात थी।

ऑस्कर अवॉर्ड्स में anora movie को 6 नॉमिनेशन मिले थे, जिनमें से 5 कैटेगरी में फिल्म ने बाजी मारी। इन 5 अवॉर्ड्स में से एक अवॉर्ड ‘बेस्ट एक्ट्रेस’ कैटेगरी में फिल्म की एक्ट्रेस मिकी मैडिसन को मिला। जबकि बाकी 4 अकेले फिल्ममेकर सीन बेकर ने जीते। बेस्ट पिक्चर, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट ओरिजिनल स्क्रीनप्ले और बेस्ट एडिटिंग कैटेगरी के ऑस्कर ट्रॉफी जीतकर सीन ने दुनियाभर के स्वतंत्र फिल्ममेकर्स के लिए एक बेहतरीन मिसाल कायम की है। आइए आपको बताते हैं कैसे…

बॉलीवुड एक्टर्स की फीस से भी कम है Anora movie का बजट

anora movie का बजट 6 मिलियन डॉलर है, जो भारतीय करेंसी में करीब 52 करोड़ रुपये है। अगर बॉलीवुड से आ रही रिपोर्ट्स की मानें तो कार्तिक आर्यन फिल्ममेकर करण जौहर की फिल्म के लिए 50 करोड़ रुपये फीस ले रहे हैं। कुछ महीने पहले फोर्ब्स ने सबसे ज्यादा फीस लेने वाले भारतीय एक्टर्स की लिस्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक अक्षय कुमार की फीस अलग-अलग प्रोजेक्ट के हिसाब से 60 करोड़ से लेकर 145 करोड़ रुपये तक है। जबकि तीनों खान की फीस एक प्रोजेक्ट के लिए 100 करोड़ से ज्यादा है।

अगर इस लिहाज से तुलना करें तो फिल्ममेकर सीन बेकर ने इन स्टार्स की फीस से आधी कीमत पर एक हॉलीवुड फिल्म बनाई है जिसने 4 ऑस्कर जीते हैं। बॉलीवुड में भी यह बहस पिछले कुछ समय से चल रही है कि कलाकारों को उनकी मनचाही फीस देने से फिल्म के निर्माण का बजट बिगड़ जाता है और अंततः फिल्म के कंटेंट को नुकसान उठाना पड़ता है।

इंडी फिल्में कैसे अलग हैं?

इंडी सिनेमा जिसे इंडी सिनेमा भी कहा जाता है, इन दिनों कई स्तरों पर संघर्ष कर रहा है। पहला सवाल इन फिल्मों के विषय पर है। स्वतंत्र फिल्म निर्माता ऐसे विषय चुनते हैं, जो मुख्यधारा के सिनेमा से बहुत अलग होते हैं। anora movie एक से-क्स वर्कर और कामुक डांसर लड़की की कहानी है, जिसकी शादी रूस के एक शक्तिशाली रईस के बेटे से हो जाती है। लड़की को लगता है कि यह शादी उसकी जिंदगी बदल देगी और उसकी जिंदगी अब ‘सिंड्रेला स्टोरी’ जैसी हो जाएगी। लेकिन जिस तरह से यह फिल्म ‘सिंड्रेला स्टोरी’ को असल जिंदगी की परिस्थितियों में घुटते हुए दिखाती है, वह बहुत भावुक और दुखद है।

anora movie के निर्देशक सीन बेकर अपनी पिछली फिल्मों ‘टेंगेरिन’, ‘रेड रॉकेट’ और ‘द फ्लोरिडा प्रोजेक्ट’ में अपने सिनेमा के लेंस के जरिए सेक्स और सेक्स वर्क की नैतिकता की जांच करते रहे हैं। जाहिर है, इन कहानियों की प्रकृति ऐसी है कि पात्रों के जीवन को दिखाने के लिए सेक्स से जुड़े दृश्य जरूरी हो जाते हैं। और अक्सर इसी वजह से दर्शक इंडी सिनेमा को कमतर आंकते हैं। हालांकि, दूसरी तरफ मुख्यधारा की फिल्मों में से-क्स के दृश्यों का इस्तेमाल मसाला डालने और दर्शकों को रोमांचित करने तथा उन्हें थिएटर तक खींचने के लिए किया जाता है। लेकिन सिनेमाई भाषा की चमक-दमक के कारण दर्शक उन्हें आसानी से पचा लेते हैं।

anora movie जैसी स्वतंत्र फिल्में यथार्थवादी दुनिया पर आधारित होती हैं। उनकी सिनेमाई भाषा, डिजाइन, शैली और सौंदर्यबोध बहुत अलग होते हैं। ऐसे फिल्मकार स्टूडियो और बड़े प्रोडक्शन हाउस के पारंपरिक सेटअप में काम नहीं करते क्योंकि कॉरपोरेट सेटिंग अक्सर उनके सिनेमाई विजन के लिए स्वस्थ साबित नहीं होती। बॉलीवुड की बात करें तो संजय मिश्रा की ‘आंखों देखी’, विक्रांत मैसी स्टारर ‘ए डेथ इन द गंज’ को इंडी फिल्में कहा जा सकता है। चीजों को थोड़ा और सरल बनाने के लिए अनुराग कश्यप या दिबाकर बनर्जी के सिनेमा का सौंदर्यशास्त्र इंडी सिनेमा से काफी मिलता-जुलता लगता है।

इंडी फिल्मकारों का संघर्ष क्या है?

ऐसे फिल्मकारों की फिल्मों को अक्सर मुख्यधारा के सिनेमा से ‘अलग’ कहकर किनारे कर दिया जाता है। उन्हें आर्ट हाउस फिल्में या फिल्म फेस्टिवल फिल्में कहकर अलग ब्रैकेट में रखा जाता है। ऑस्कर अवॉर्ड्स के चलन में भी ऐसी फिल्मों के लिए ज्यादा जगह नहीं रही है। कुछ साल पहले तक ऑस्कर में भी ऐसी फिल्मों का बोलबाला रहा है जो सिनेमाई अनुभव को अद्भुत बनाती हैं, बड़े पैमाने पर कहानियां दिखाती हैं या कल्पना की दुनिया को नए स्तर पर ले जाती हैं। जबकि इंडी फिल्मों के बारे में यह कहना ज्यादा सही होगा कि वे जिंदगी की सड़ांध और इंसान के कुरूप पक्ष को उजागर करने में कभी पीछे नहीं रहतीं। ऐसी फिल्में मुख्यधारा का सिनेमा देखने वाले दर्शकों के लिए चौंकाने वाली और परेशान करने वाली हो सकती हैं।

कई दर्शकों के लिए Anora movie भी ऐसी ही फिल्म थी, इसीलिए अंतरराष्ट्रीय सिनेमा प्रेमियों के बीच यह बहस शुरू हो गई है कि यह ऑस्कर की हकदार थी या नहीं? स्वतंत्र सिनेमा के साथ एक और बड़ी समस्या यह है कि निर्माताओं के लिए फिल्मों को सिनेमाघरों में रिलीज करवाना काफी मुश्किल होता है। उदाहरण के लिए पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’,

कान्स फिल्म फेस्टिवल का दूसरा शीर्ष पुरस्कार जीतने वाली यह फिल्म कई फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार जीत रही थी और सराही जा रही थी। लेकिन जब देश में फिल्म रिलीज करने की बात आई तो पायल के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई। एक इंटरव्यू में पायल ने बताया था कि फिल्म की बॉक्स ऑफिस अपील बढ़ाने के लिए वितरक अक्सर फिल्म में बदलाव या कट की मांग करने लगते हैं और इससे एक निर्देशक की रचनात्मकता खराब हो जाती है। पायल ने अपनी फिल्म के वितरण के लिए अभिनेता राणा दग्गुबाती की कंपनी को इसलिए चुना क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि फिल्म में कोई बदलाव किया जाए। यानी कहानी से लेकर सिनेमाघरों में रिलीज तक हर स्तर पर इंडी फिल्में मुख्यधारा की फिल्मों के सामने बुरी तरह संघर्ष करती रही हैं।

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ओटीटी के आने से एक बड़ी समस्या यह है कि फिल्म प्रदर्शकों ने फिल्मों को दो श्रेणियों में बांट दिया है और वे खास तरह की भव्य या लोकप्रिय मनोरंजक फिल्मों को ही सिनेमाघरों में रिलीज करना चाहते हैं। अगर हम इरफान खान की ‘द लंचबॉक्स’ का उदाहरण देखें तो आज के माहौल में शायद इसे सिर्फ ओटीटी के लिए ही उपयुक्त माना जाता और सिनेमाघरों में स्क्रीन मिलना मुश्किल होता। हालांकि, जब ‘द लंचबॉक्स’ सिनेमाघरों में रिलीज हुई तो इसे 500 से भी कम स्क्रीन मिलीं। लोगों ने इस फिल्म को सिनेमाघरों से ज्यादा ओटीटी और डिजिटल माध्यमों पर देखा और आज शायद ही कोई दर्शक हो जिसे यह फिल्म देखने के बाद पसंद न आई हो।

प्रोडक्शन के लिहाज से भी आज anora movie को नेटफ्लिक्स या दूसरे प्लेटफॉर्म से हरी झंडी मिलना आसान है, लेकिन स्टूडियो ऐसी फिल्म पर शायद ही पैसा लगाएंगे। और हॉलीवुड में तो फिर भी मशहूर इंडी फिल्ममेकर्स को फंडिंग मिल जाती है, बॉलीवुड जैसी इंडस्ट्री में ऐसी फिल्मों का पर्दे पर आना और भी मुश्किल होता जा रहा है।

ऑस्कर अवॉर्ड्स में भी मिल रही ज्यादा जगह

ऑस्कर ने भी पिछले कुछ सालों में फिल्मों के चयन का अपना तरीका बदला है। अब ऐसी फिल्मों पर जोर दिया जा रहा है जो उस आबादी वर्ग या समुदाय की कहानी कहती हैं जिसे कम प्रतिनिधित्व मिलता है। ऐसी पृष्ठभूमि में, ऑस्कर में शानदार तरीके से पुरस्कार जीतने वाली सीन बेकर की Anora movie दुनिया भर के स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के लिए एक बड़ा संदेश है। ऑस्कर पुरस्कार सिर्फ एक फिल्म सम्मान नहीं है, बल्कि अपने आप में एक बड़ा कारक है जो बाजार को चलाता है। जिस तरह की फिल्म को पुरस्कार मिलता है, फिल्म उद्योग में ऐसी परियोजनाओं की स्वीकार्यता बढ़ जाती है। ऐसी परियोजनाओं के लिए फंडिंग का रास्ता आसान हो जाता है और उन पर स्पॉटलाइट बनी रहती है।

anora movie को ऑस्कर मिलना उन फिल्म निर्माताओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा है, जो अपने बेहतरीन सिनेमा के बावजूद अपने काम को कमर्शियल सिनेमा के बीच जगह दिलाने के लिए संघर्ष करते हैं। ऑस्कर पुरस्कार लेते समय सीन बेकर ने अपने भाषण में यह भी कहा, ‘यह मेरा युद्धघोष है: फिल्म निर्माताओं, बड़े पर्दे के लिए फिल्में बनाते रहो। मुझे यकीन है कि मैं ऐसा करता रहूंगा।’ अब देखना यह है कि सीन का यह ‘युद्धघोष’ दुनिया के स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को किस तरह प्रेरित करता है।

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